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Untouched stories: pehli mulaakaat meri dost ke sath
कन्या भ्रूण ह्त्या सही या गलत ??????????????
कन्या भ्रूण ह्त्या सही या गलत ??????????????
आज भी हमारे देश में लडकियों होने से पहले ही मार दिया जाता हे सब कहते है की ये गलत है पर आज हमारे देश के जो हालात है दिन ब दिन बड़ते अपराध रेप अपहरण दहेज़ उत्पीडन और घरेलु हिंसा और इनके चलते होने वाली आत्महत्याओ के मामलो को देख कर कभी मन के किसी कोने में ये ख्याल आता है की अगर पैदा होने के बाद एक नन्ही सी मासूम कलि को यही सब सहना है रोज़ रोज़ मरना है तो दुनिया में ही क्यों लाये माँ बाप तो डरेंगे ही की कही उनकी बेटी को भी किसी हादसे का शिकार ना होना पड़े उस पर ये समाज जहा आज भी बेटी को बोझ ही माना जाता है आज भी यही कहा जाता है की बेटी के माँ बाप है तो सर तो नीचा रखना ही पडेगा शर्मिन्दा भी होना पडेगा आखिर समाज में जो रहना है फिर तो यही सच है की बेटी तू दुनिया में आएगी तो मेरा सर और कंधे दोनों झुक जायेंगे इसलिए तू जन्म ना ले यही अच्छा हैसच हम आज भी अपनी मानसिकता को नहीं बदल पाए दुनिया चाँद के आगे निकल गई और हम ज़मीन पर चलना भी नहीं सीख पाते। हम बात करते है की महिलाओ को हर जगह बराबरी का हक है अरे हम उन्हें साथ खड़ा देख कर बर्दाश्त नहीं कर पाते अगर किसी ऑफिस में लेडीज बॉस हो तो लोग पीठ पीछे मज़ाक उड़ाते है अगर लड़की को तरक्की मिले तो उसके काम को नहीं उसके चरित्र कोआंकने लगते है ज़माना किस और जा रहा है कितनी तरक्की कर रहा है इसका सबूत हमारे राजनेता समय समय पे महिला विरोधी बयान देकर देते रहते है जब देश के रहनुमा ही देश की महिलाओ की इज्ज़त नहीं कर पाते तो हम आम नागरिको से क्या उम्मीद करे क्राइम रेट में शहर के पड़े लिखे युवा भी उतने ही सक्रिय है जितने गाँव के अनपढ और जाहिल लोग फिर किस उन्नति की और बढ़ रहे है हम आज भी जब कोई क्राइम होता है खूब हंगामा होता है सब युवा भीड़ लगाते है चिल्लाते है नारे लगाते है और फिर अगली गली में जाकर लडकियों पर फब्तिय कसते है
वर्ना क्यों आज इतने प्रचार प्रसार के बाद भी क्राइम रेट में कमी नहीं आ रही क्यों महिलाओ को लेकर हम आज भी घटिया सोच ही रखते है महा नगर हो या गाँव क्यों महिला हर जगह असुरक्षित है क्यों।?????????
तभी तो आज ये सवाल उठा की लडकियों को अगर यही सब सहना है अगर हम उन्हें एक इज्ज़त दार ज़िन्दगी नहीं दे सकते तो हमें क्या हक़ है उनको पैदा करके उन्हें इस नरक में झोंकने का। ………………।
एक नई कोशिश
मुकद्दरमें किसके क्या लिखा है ये तो ऊपर वाला ही जानता है हम तो सिर्फ कोशिश ही कर सकते है पर जब सब कुछ किस्मत में पहले से ही लिखा है तो कोशिश क्या करे आखिर होना तो वही है जो मुकद्दर में लिखा है हम कोशिश करेंगे अपनी किस्मत बदलने की और जब हार जायेंगे तो कहेंगे की किस्मत का लिखा कोन बदल सकता है हाँ जब भी हम हारते है तो यही तो कहते है की ये तो मरी किस्मत ही खराब है मेने तो पूरी कोशिश की थी पर सच कई बार हम देखते है की कई लोग जिनको कोई ज्ञान नहीं होता या बिना कोई योग्यता के कई ऊंची पोस्ट पे काम करते है और जो लोग ज्ञान वान है वो उनकी जीहुजूरी करते है कोई सारा दिनमेहनत करके भी दो रोटी नहीं कमा पाता और कोई बिना कुछ किये ऐश करता है कई सवाल जिनके जवाब हम नहीं ढून्ढ पाते क्यों आखिर क्यों कुछ लोग मिटटी को हाथ लगाये तो वो सोना बन जाती है और कुछ लोग सोने को भी मिटटी में बदल देते है कई बार हम किसी का बुरा नहीं चाहते फिर भी किसी का दिल दुख देते है और कई बार जो हमे बार बार दुःख देते है उनको खुश करने के लिए खुद को भी मिटा देते है कई बार हमे पता होता है की ये रास्ता हमे कभी मंजिल पे नहीं ले जायेगा फिर भी हम उस पर चलते रहते है कभी मंजिल सामने होने पर भी उस तक नहीं पहुँच पाते कभी हम किसी को नहीं समझ पाते तो कभी कोई हमे हर इंसान अपने आप में उलझा हुआ है अपने सवालों के जवाब ढूँढता रहता है सारी ज़िन्दगी यूँही सवालों में कट जाती है क्यूंकि वक्त तो नहीं रुकता हम भले ही रुक जाये
काश कभी ऐसा हो की हम को हमारे सवालों के जवाब मिल जाये जब हम सुबह जागे तो हमको पता हो की आज कुछ बुरा नहीं होगा सब ठीक होगा आज कोई नई उलझन नहीं आएगी पर खैर ये तो पंडित और ज्ञानी भी नहीं बता सकते की अगले पल क्या होने वाला है तो हम क्या जाने। इसलिए सब कुछ मुकद्दर पे छोड़ के अपना काम करते रहने में ही भलाई है हम तो सिर्फ कोशिश ही कर सकते है न हर बार एक नई कोशिश।
Impact of social media in india
छोडो कल की बाते कल की बात पुरानी
छोडो कल की बाते कल की बात पुरानी
( नई जनरेशन और नए खेल )
कुछ समय पहले अमिताभ बच्चन ने अपने एक इंटरव्यू में कहा की उनकी डेढ़ साल की पोती अपना IPAD खुद चलाती है जो भी एप्लीकेशन उसे देखना होती है उसको ओपन करती है और रन करती है मेरे घर पर मेरा बेटा जो अभी १ साल और कुछ महीनो का है पूरे टाइम मेरे मोबाइल पर या कंप्यूटर पर पोयम्स और देखना पसंद करता है उसे स्क्रीन मोबाइल को चलाना आता है रेसिंग मोटो उसका पसंदीदा गेम है और स्क्रीन पे टच से होने वाले इफ़ेक्ट को वो समझता है और अगर कोई एप्लीकेशन उसे बंद करनी हो तो वो काम खुद ही कर लेता है. आज कल बच्चे जिस माहोल में रहते है वो उन्हें बहुत जल्दी तकनीकी समझ दे देता है मोबाइल कंप्यूटर और जाने कितनी नई तकनीक जो हम अब सीख पाए है उनकी जानकारी उन्हें बहुत जल्द हो जाती है आज सावन का आखिरी दिन है पर कही की तरह सावन के झूले नज़र नही ना ही झुण्ड बना कर चपेटे और गिप्पा खेलती लडकिया नज़र आती है बाजारों में राखियो पर भी डोरेमोन छोटा भीम आदि ही नज़र आते है सब कुछ जैसे डिजिटल हो गया है पर यही तो नई पीड़ी है और हमे इस को पूरा सहयोग देना चाहिए क्यूँकी हर सिक्के के दो पहलु होते है अगर आज हमारी पीड़ी आगे बड़ रही है तभी तो वो कल नए भारत का निर्माण करेगी और हम अपने विचार उन पर थोप नहीं सकते क्यूंकि आज बच्चो का दिमाग बहुत ज्यादा विकसित होता है क्यूँकी उन्हें संसार को जान्ने के मौके बहुत ज्यादा और बहुत जल्दी मिलते है और इतिहास की कहानिया कितनी लुभावनी क्यों ना हो भविष्य की चमक में खो ही जाती है एक दिन भविष्य को भी इतिहास बनना है तो क्यों ना हम अपनी नई जनरेशन को मौका दे की वो अपना इतिहास खुद बनाए। बस अपने संस्कार और सभ्यता की विरासत को संभाल कर रखे पर इतिहास की कहानियो में खोकर कही भविष्य के बारे में विचार करना ना छोड़ दे इसीलिए तो कहते है की
छोडो कल की बाते कल की बात पुरानी, नए दौर में लिखेंगे मिलकर नई कहानी
कुशल कामगारों के लिए राष्ट्रीय कौशल प्रमाणन तथा नक़द पुरस्कार योजना शुरू
केंद्र सरकार ने कुशल श्रम शक्ति के लिए रोजगार सृजित करने के उद्देश्य से तथा नक़द पुरस्कार योजना शुरू की. वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने 16 अगस्त 2013 को नई दिल्ली में एक समारोह में इसका शुभारम्भ किया. इस योजना से अगले 12 महीनों में 10 लाख रोजगार सृजित होनी है. पी चिदंबरम ने राष्ट्रीय कौशल प्रमाणन तथा नक़द पुरस्कार योजना को देश में अब तक शुरू की गई प्रमुख महत्वपूर्ण योजनाओं में से एक बताया.
वर्ष 2004-05 और 2009-10 के बीच देश में 2 करोड़ रोजगार का सृजन हुआ. बेरोजगारी में कमी आई और ये 8.3 तीन प्रतिशत से घटकर 6.6 प्रतिशत पर आ गई. देश की रोजगार के अवसर सृजित करने की क्षमता वर्ष 2005 में 2 करोड़ 60 लाख 50 हजार से बढ़कर वर्ष 2011 में 2 करोड़ 90 लाख हो गई. वित्तमंत्री ने इस अवसर पर विश्व कौशल प्रतियोगिता के तीन पदक विजेताओं को भी सम्मानित किया.
योजना से संबंधित मुख्य तथ्य
• इसके तहत प्रत्येक वर्ष गरीब परिवारों के 3 लाख युवाओं को प्रशिक्षित कर उन्हें रोजगार मुहैया कराया जाना है.
• ये योजना सार्वजनिक और निजी तथा सार्वजनिक भागीदारी के जरिए चलाई जानी है.
• लाभार्थियों को नक़द प्रत्यक्ष अंतरण के माध्यम से लाभ प्राप्त होना है.
• इस योजना से अगले 12 महीनों में 10 लाख रोजगार सृजित होनी है.
राष्ट्रीय कौशल विकास निगम
राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) का शुभारम्भ 21 अक्टूबर 2009 को किया गया था. यह संस्था निजी तथा सरकारी क्षेत्र की साझेदारी में चलने वाली अपने तरह की एकमात्र संस्था है जिसे ये दिशा-निर्देश दिए गए हैं की वो वर्ष 2022 तक 50 करोड़ श्रमिको को कुशल बनाने का जो लक्ष्य रखा गया है. राष्ट्रीय कौशल विकास निगम वित्त मंत्रालय के अंतर्गत बिना मुनाफे के कार्य करने वाली एक संस्था है जिसकी स्थापना कम्पनी एक्ट 1956 के सेक्शन 25 के तहत की गई. इस संस्था में निजी तथा सरकारी साझेदारी क्रमशः 51 प्रतिशत तथा 49 प्रतिशत है. वित्त मंत्रालय के साथ-साथ प्रमुख औद्योगिक संगठनों ने भी इस संस्था की शुरूआती पूँजी में अपना योगदान किया.
स्वंत्रता दिवस एक विचार
स्वंत्रता दिवस एक विचार
स्वंत्रता दिवस एक विचार
हर साल की तरह इस बार भी १५ अगस्त आ गया और हर साल की तरह इस बार भी १५ अगस्त की छुट्टी होगी हम सब घूमने जायेंगे और घर पर किसी चैनल पर आने वाले देशभक्ति के गानों पर नाचते गाते सेलिब्रिटीज को देख कर खुश होंगे और फिर अपने बाकी बचे हुए काम करके सो जायेंगे यही हमारी आजादी हे क्यूंकि हमे ज़िन्दगी अपने तरीके से जीने की आजादी है क्या मतलब हमे देश से भाई हम आज़ाद है और हमारे लिए आजादी का मतलब सिर्फ अपने हिसाब से जीने से है जहा हमे कोई फिक्र न हो कोई रोक टोक न हो. पर क्या सिर्फ एक दिन हम अपने देश के बारे में नहीं सोच सकते क्या हम इतने खुदगर्ज़ है की हमें कोई फिक्र नहीं की देश के बॉर्डर पर क्या हो रहा है क्या हमें पता है की जम्मू कश्मीर में आज कल क्या हाल है क्या हमें फिक्र की की चारो और पानी ने जो तबाही मचाई है उन लोगो की जो उस तबाही में अपना सब कुछ खो चुके है
शायद नहीं वो सब तो न्यूज़ चैनल पर दीखता है सिर्फ उतनी ही देर याद रहता है और फिर सब भूल जाते है बड़े बड़े आन्दोलन होते है सब जोश से भर जाते है और फिर सब शांत। यहाँ तक की आन्दोलन चलाने वाले भी अपने हितपूर्ति में लग जाते है किसी को देश की फिक्र नहीं सब को अपनी फिक्र है नेता संसद में हंगामा करते है और जनता सडको पर पर बर्बाद तो देश को ही करते है
आखिर हम आज़ाद है हमें अपनी बात कहने का हक है पर अपनी बात कहने के लिए देश को बर्बाद करने का हक़ हमे किसने दिया। संसद भंग कर या पुतले जला कर या निर्दोष जनता को मारकर देश को किस दिशा में ले जाना चाहते है हम घटिया राजनीति और संक्रीन सोच हमारी सबसे बड़ी समस्या है
हम प्राथना करते है की इस बार हम इस सोच से ऊपर उठकर देश के उत्थान के लिए काम करेंगे
अगर हर देशवासी अपने देश के बारे में सोचे तो हमारा देश सचमुच महान हो जायेगा
ज़रूरी नहीं की हम कोई महान काम करे भीड़ जुटाए पर छोटे छोटे काम भी हमारे देश के विकास में योगदान कर सकते है जैसे अपने आसपास से शुरुआत करे। किसी ज़रूरतमंद की मदद करे.
नियमो का पालन करे आदि
हम आप सभी भारत वासियो को स्वन्त्रत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये देते है
बिन पानी सब सून और जब पानी करदे सब सून
पानी ही पानी |
मशहूर दोहा है की
पर इस इस हुआ है की पानी ही पानी है और पानी ने सब सूना कर दिया लोग बेघर हुए हजारो बर्बाद
हर जगह सिर्फ पानी ही पानी। और इतना पानी होने के बाद भी पीने के पानी लोग। सच है
जब पानी न हो तो पानी ना होने का रोना और जब पानी अपने विशाल रूप में दर्शन दे तो पानी बंद होने की दुआए मांगते लोग। पर सच इस बार जितना पानी देखा उतना पहले कभी नहीं देखा हमारे शहर में भी सभी तालाब नदी नाले उफान पे है दुसरे शेहरो से संपर्क कट गया है। दूध सब्जी और पीने का पानी सबकी किल्लत हो गई है सारे रास्ते पानी में डूबे है और बड़ो के साथ बच्चे भी परेशान है क्यूंकि वो भी खेल नहीं पा रहे है जो पहले स्कूल बंद होने की ख़ुशी मना रहे थे अब दोस्तों की याद करके रो रहे है और तो और ईद की रोनक को भी पानी ने फीका कर दिया क्यूंकि लगातार बरसते पानी की वजह से कोई किसी से मिल ही नहिपाया सब सारे दिन अपने घरो में पानी बंद होने का इंतज़ार कर रहे थे पर पानी ने तो जैसे बंद ना होने की कसम ही खाई थी बाज़ार की रोनक भी कम रही। लोग नए कपडे खरीदने से ज्यादा घरो की सीलन और छतो से टपकने वाले पानी को रोकने का सामान खरीदने में बिजी थे। अब १५ अगस्त आ रहा है हम दुआ करते है की हम पूरे जोश और जूनून से स्वंत्रता दिवस मना पाएंगे।
आमीन
ज़िन्दगी का सफ़र
कभी वक़्त मिले तो सोचना की हमने अपनी ज़िन्दगी में कितना कुछ कितना कुछ खोया
कभी किसी ने हमे धोका दिया तो कभी हमने किसी को धोका दिया कभी किसी ने हमसे झूठ बोला तो कभी हमने किसी से
बस ज़िन्दगी ऐसे ही गुज़र गई हम ने सारी ज़िन्दगी दूसरो को दी पर कभी खुद को समझने की कोशिश नहीं की हम क्या चाहते है हमारी क्या ख्वाहिशे है कभी वक़्त ही नहीं मिला सोचने का कभी घर वालो की ख़ुशी के लिए तो कभी बच्चो की ख़ुशी के लिए कभी दोस्तों की ख़ुशी के लिए बस करते रहे सब
और फिर भी किसी को भी खुश नहीं कर पाए आज भी हर इंसान को शिकायत है सही है जो इंसान खुद खुश न हो वो दूसरो को खुश सकता है पर हम जिस समाज में रहते है हमने वह हमेशा यही देखा है की हमारी माँ कभी भी अपनी ख़ुशी नहीं देखती वो सिर्फ बच्चो की ख़ुशी में खुश हो जाती है पापा पुराने कपडे पहनते है ताकि बच्चो के नए कपड़ो के लिए पैसे बचा सके हम भी कहीं ना कहीं उसी परवरिश का एक हिस्सा है ये हमारे संस्कार है जो हम को खुश होने से रोकते है पर हमे अपनों से जोड़ते है और हम दूसरो की ख़ुशी में अपनी ख़ुशी ढूँढने लगते है
और सारी ज़िन्दगी दूसरो को खुश करके खुश होते रहते है यही है ज़िन्दगी का सफ़र
कहते है न